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नींबू की खेती कैसे करें

नींबू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

नींबू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों नींबू का इस्तेमाल दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों व टूथपेस्ट, साबुन आदि के निर्माण में किया जाता है। इसलिये इसकी व्यावसायिक खेती करके कमाई की जा सकती है। दूसरी बात यह है कि नीबू कम उपजाऊ वाली मिट्टी में कहीं भी उगाया जा सकता है। नीबू की खेती में शुरुआत में जो लागत लगती है, वही लगती है, उसके बाद तो इसकी फसल 10-15 साल तक साल में दो या तीन बार तक होती है। इसलिये इसकी खेती फायदेमंद होती है। आइये जानते हैं नींबू की खेती के बारे में |

मिट्टी एवं जलवायु

नींबू के पौधे के लिए बलुई, दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है। इसके अलावा लाल लेटराईट मिट्टी में भी नीबू उगाया जा सकता है। नीबू की खेती अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में भी की जा सकती है। इसे पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। नीबू के पौधे को सर्दी और पाला से बचाने की जरूरत होती है।  4 से 9 पीएच मान वाली मृदा में नीबू की खेती की जा सकती है। नींबू के पौधे के लिए अर्ध शुष्क जलवायु सबसे अच्छी होती है। जहां पर सर्दियां अधिक पड़तीं हैं या पाला पड़ता है, वहां पर नीबू की खेती में पैदावार कम होती है, क्यों अधिक सर्दी पड़ने से नीबू के पौधे का विकास रुक जाता है।  इसलिये भारत में नीबू की सबसे अधिक खेती उष्ण जलवायु वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों में होती है। उत्तर भारत के पंजाब,हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार,राजस्थान में नीबू की खेती की जाती है लेकिन जिस वर्ष सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है, उस सीजन में नीबू की पैदावार बहुत कम होती है। नींबू की उन्नत किस्में

नींबू की उन्नत किस्में

नींबू की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों में कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. कागजी नींबू : इस नीबू में 52 प्रतिशत रस होता है।
  2. प्रमालिनी : इस किस्म के नींबू के फलों में 57 प्रतिशत रस होता है।
  3. विक्रम या पंजाबी बारहमासी : इस किस्म की खास बात है कि इसके फल गुच्छे के रूप में आते हैं और प्रत्येक गुच्छे में 10-10 नींबू तक आते हैं।
  4. चक्रधर: बीज रहित नींबू में रस की मात्रा सबसे अधिक 60 से 66 प्रतिशत तक होती है।
  5. पी के एम-1: इस किस्म के नींबू में रस की मात्रा तो 52 प्रतिशत ही होती है लेकिन फल का आकार बहुत बड़ा होता है।
  6. साई सरबती : पतले छिल्के और बीज रहित किस्म के नींबू की फसल पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह नींबू असम के पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होता है। इसका उत्पादन अन्य किस्मों की फसलों से दो गुना होता है।

खेत की तैयारी कैसे करें

मैदानी इलाकों में खेतों की अच्छी तरह से जुताई करनी होती है। खेत को समतल बनाना चाहिये ताकि खेत में कहीं भी जल जमाव न हो। पर्वतीय इलाकों में खेतों को तैयार करने के बाद उनमें मेड़ बनाकर नींबू के पौधे लगाने चाहिये। जमीन की जुताई करने के बाद खेत में गोबर की खाद डाल दें, उसके बाद फिर जुताई करके खेत को रोपाई के लिए छोड़ दें। एक सप्ताह तक खेत को अच्छी धूप लगने के बाद उसमें नीबू के पौधे की रोपाई के लिए गड्ढे बनाने चाहिये। प्रति हेक्टेयर 500 पौधे लगाने के लिए चार गुणा चार मीटर के अंतर से गड्ढे बनाने चाहिये। अधिक उपजाऊ मिट्टी में पौधों की दूरी 5 गुणा 5 मीटर रखना चाहिये। पौध लगाने के लिए दो फिट गहरा, दो फिट वर्गाकार का गड्ढा होना चाहिये।

बिजाई, रोपाई और उचित समय

किसान भाइयों नींबू की बिजाई यानी बीज की बुआई भी की जा सकती है। नींबू के पौधों की रोपाई भी की जा सकती है। दोनों विधियों से बुआई की जा सकती है। पौधों रोप कर नींबू की खेती जल्दी और अच्छी होती है तथा इसमें मेहनत भी कम लगती है जबकि बीज बोकर बुआई करने से समय और मेहनत दोनों अधिक लगते हैं। खेत में उन्नत किस्म की फसल लेनी हो और उसकी पौध न मिल रही हो तब आपको बीज बोकर ही खेती करनी चाहिये। ये भी पढ़े: बिजाई से वंचित किसानों को राहत, 61 करोड़ जारी नींबू का पौधा जून से अगस्त के बीच लगाया जाना चाहिये। यह मौसम ऐसा होता है जिसमें नींबू का पौधा सबसे तेजी से बढ़ता है। इस दौरान बारिश का पानी भी पौधे को मिलता है। दूसरा पौधे की बढ़वार के लिए सबसे उपयुक्त तापमान इस समय होता है। नींबू की खेती कैसे करें?

सिंचाई प्रबंधन

नींबू के पौधे को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। किसान भाइयों इसका मतलब यह नहीं कि नींबू के पौधे की सिंचाई ही नहीं करनी है। वर्षाकाल में बारिश न हो तो 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिये लेकिन यह सिंचाई हल्की होनी चाहिये जिससे भूमि में 6-8 प्रतिशत तक नमी बनी रहे। सर्दियों में पाला व सर्दी से बचाने के लिए एक सप्ताह मे एक बार पानी अवश्य देना चाहिये। इसके अलावा पौधे में कलियां आती दिखाई दें तब पानी देने की जरूरत है। उसे बाद पानी को रोक देना चाहिये। जड़ों में अधिक पानी होने के कारण फूल हल्के किस्म के आते हैं और वे झड़ जाते हैं। जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ता है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

नींबू के पौधों कों खेत में लगाने के बाद गोबर की खाद देनी होती है। पहले साल गोबर की खाद प्रति पौधे के हिसाब से 5 किलो देनी चाहिये। दूसरे साल 10 किलो पौधा गोबर की खाद देना चाहिये। इसी अनुपात में गोबर की खाद को तब तक बढ़ाते रहना चाहिये जब तक उसमें फल न आने लगें। इसी तरह खेत में यूरिया भी पहले साल 300 ग्राम देनी चाहिये। दूसरे साल 600 ग्राम देनी चाहिये। इसी अनुपात में इसको भी बढाते रहना चाहिये। यूरिया की खाद को सर्दी के महीने में देना चाहिये तथा पूरी मात्रा को दो या तीन बार में पौधें में डालें।

पौधों की देखभाल

नींबू के पौधों की देखभाल भी करनी होती है। कोई पौधा एक ही शाखा से सीधा बढ़ रहा है तो उसका प्रबंधन करना चाहिये। तीन चार महीने में पौधों की जड़ों के पास निराई गुड़ाई करते रहना चाहिये। एक साल में एक बार पौधों के आसपास की मिट्टी निकाल कर उसमें गोबर की खाद भरना चाहिये। जब पौधों पर फल-फूल न हों तब सूखी टहनियों को हटा देना चाहिये।

कीट-रोग नियंत्रण

नींबू कीट-रोग नियंत्रण किसान भाइयों नींबू के पौधों में कई प्रकार के कीट व रोग लगते हैं। जिससे फसल का बहुत नुकसान होता है। आइये देखते हैं कि इसका प्रबंधन किस प्रकार से करना होता है।
  1. कैंकर रोग: इस रोग के संकेत मिलने पर किसान भाइयों को पौघों पर स्ट्रेप्टोमाइसिल सल्फेट का छिड़काव 15 दिन में दो बार करना चाहिये। इससे काफी फायदा मिलता है।
  2. कीट रोग नियंत्रण: कीटों से होने वाले रोगों पर नियंत्रण के लिए एन्थ्रेकनोज के मिश्रण का छिड़काव करने से नियंत्रण होता है। इसके छिड़काव से मुख्य रोगों के अलावा अन्य कई तरह के कीट रोग पर भी काबू पाया जा सकता है।
  3. गोंद रिसाव रोग: गोंद रिसाव का रोग खेत में पानी भर जाने के कारण होता है। जड़ें गलने लगतीं हैं और पौधा पीला पड़ने लगता है। सबसे पहले तो खेत से पानी को निकाला जाना चाहिये। उसके बाद मिट्टी में 0.2 प्रतिशत मैटालैक्सिल, एमजेड-72 और 0.5 प्रतिशत ट्राइकोडरमा विराइड मिलाकर पौधों में डालने से लाभ मिलता है।
  4. काले धब्बे का रोग: यह रोग फल को लगता है। धब्बे नजर आते ही पेड़ को पानी से साफ कर देना चाहिये। सफेद तेल और कॉपर कोमिक्स करके पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिये।
  5. धफडी रोग्: इस रोग से नींबू पर सिलेटी रंग की परत जम जाती है। इससे नीबू खराब हो जाता है। इससे फसल को बचाने के लिए भी सफेद तेल व कॉपर छिड़काव करना चाहिये। इससे काफी लाभ होता है।
  6. रस चूसने वाले कीट: नींबू के पेड़ की शाखाओं और पत्तियों का रस चूस कर खत्म करने वाले कीट सिटरस सिल्ला, सुरंगी, चेपा को नियंत्रण के लए मोनोक्राटोफॉस का छिड़काव पौधों पर करना चाहिये। पौधों की शाखाएं रोग से सूख गर्इं हों तो उन्हें तत्काल काट कर जला दें ताकि यह रोग और न बढ़ सके।
  7. सफेद धब्बे का रोग : इस रोग में पौधों के ऊपरी भाग में रुई जैसी जमी दिखाई देती है। इससे पत्तियां मुड़कर टेढ़ी-मेढ़ी होने लगतीं हैं। बाद में इसका सीधा असर फल पर पड़ता है। इसलिये जैसे ही इस रोग का पता चले तभी प्रभावित पत्तियों को हटा कर जला दें। रोग बढ़ने पर कार्बेनडाजिम का छिड़काव महीने में तीन या चार बार करें। काफी लाभ होगा।
  8. आयरन व जिंक की कमी को नियंत्रण करें: कभी कभी मिट्टी में जिंक व आयरन की कमी के कारण पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीलीं पड़कर गिरने लगतीं हैं। इस रोग के लगने पर गोबर की खाद दें तथा दो चम्मच जिंक 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे फायदा होगा।

फसल की कटाई कैसे करें

किसान भाइयों नींबू की फसल तीन या चार साल बाद तैयार होती है। नींबू का फल गुच्छे में आता है। गुच्छे का कोई नींबू पहले पक कर पीला हो जाता है और कुछ हरे रह जाते हैं। ऐसी स्थिति अक्सर फूल आने के लगभग चार महीने बाद आती है। उस समय आपको गुच्छों से पके हुए फल चुनकर तोड़ने चाहिये। ध्यान रखें कि हरे फल न टूटें। फलों को तोड़ने के बाद उनकी अच्छी तरह से सफाई कर लें। सफाई करने के लिए एक लीटर पानी में 2.5 ग्राम क्लोरीनेटेड मिलाकर नीबू को उसमें अच्छी तरह से धो कर साफ करें। उसके बाद उन्हें छायादार जगह पर सुखायें। इससे फल की चमक बढ़ जाती है। इसके बाद बाजार में भेजें।
नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती अधिकांश किसान मुनाफे के तौर पर करते हैं। नींबू के पौधे एक बार अच्छी तरह विकसित हो जाने के बाद कई सालों तक उत्पादन देते है। यह कम लागत में ज्यादा मुनाफे देने वाली फसलों में से एक है। बतादें, कि नींबू के पौधों को सिर्फ एक बार लगाने के उपरांत 10 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। पौधरोपण के पश्चात सिर्फ इनको देखरेख की जरूरत पड़ती है। इसका उत्पादन भी प्रति वर्ष बढ़ता जाता है। भारत विश्व का सर्वाधिक नींबू उत्पादक देश है। नींबू का सर्वाधिक उपयोग खाने के लिए किया जाता है। खाने के अतिरिक्त इसे अचार बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जाता है। आज के समय में नींबू एक बहुत ही उपयोगी फल माना जाता है, जिसे विभिन्न कॉस्मेटिक कंपनियां एवं फार्मासिटिकल कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। नींबू का पौधा झाड़ीनुमा आकार का होता है, जिसमें कम मात्रा में शाखाएं विघमान रहती हैं। नींबू की शाखाओ में छोटे-छोटे काँटे भी लगे होते है। नींबू के पौधों में निकलने वाले फूल सफेद रंग के होते हैं, लेकिन अच्छी तरह तैयार होने की स्थिति में इसके फूलों का रंग पीला हो जाता है। नींबू का स्वाद खट्टा होता है, जिसमें विटामिन ए, बी एवं सी की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। बाजारों में नींबू की सालभर काफी ज्यादा मांग बनी रहती है। यही वजह है, कि किसान भाई नींबू की खेती से कम लागत में अच्छी आमदनी कर सकते हैं।


 

नींबू की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

नींबू की खेती के लिए सबसे अच्छी बलुई दोमट मृदा मानी जाती है। साथ ही, अम्लीय क्षारीय मृदा एवं लेटराइट में भी इसका उत्पादन सहजता से किया जा सकता है। उपोष्ण कटिबंधीय एवं अर्ध शुष्क जलवायु वाले इलाकों में नींबू की पैदावार ज्यादा मात्रा में होती है। भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान राज्यों के विभिन्न इलाकों में नींबू की खेती काफी बड़े क्षेत्रफल में की जाती है। ऐसे इलाके जहां पर ज्यादा वक्त तक ठंड बनी रहती हैं, ऐसे क्षेत्रों में नींबू का उत्पादन नहीं करनी चाहिए। क्योंकि, सर्दियों के दिनों में गिरने वाले पाले से इसके पौधों को काफी नुकसान होता है। 

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नींबू में रोग एवं उनका नियंत्रण

कागजी नींबू

नींबू की इस किस्म का भारत में अत्यधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है। कागजी नींबू के अंदर 52% प्रतिशत रस की मात्रा विघमान रहती है | कागजी नींबू को व्यापारिक तौर पर नहीं उगाया जाता है।


 

प्रमालिनी

प्रमालिनी किस्म को व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है। इस प्रजाति के नींबू गुच्छो में तैयार होते हैं, जिसमें कागजी नींबू के मुकाबले 30% ज्यादा उत्पादन अर्जित होता है। इसके एक नींबू से 57% प्रतिशत तक रस अर्जित हो जाता है।


 

विक्रम किस्म का नींबू

नींबू की इस किस्म को ज्यादा उत्पादन के लिए किया जाता है। विक्रम किस्म के पौधों में निकलने वाले फल गुच्छे के स्वरुप में होते हैं, इसके एक गुच्छे से 7 से 10 नींबू अर्जित हो जाते हैं। इस किस्म के पौधों पर सालभर नींबू देखने को मिल जाते हैं। पंजाब में इसको पंजाबी बारहमासी के नाम से भी मशहूर है। साथ ही, इसके अतिरिक्त नींबू की चक्रधर, पी के एम-1, साई शरबती आदि ऐसी किस्मों को ज्यादा रस और उत्पादन के लिए उगाया जाता है। 

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नींबू के खेत की तैयारी इस तरह करें

नींबू का पौधा पूरी तरह से तैयार हो जाने पर बहुत सालों तक उपज प्रदान करता है। इस वजह से इसके खेत को बेहतर ढंग से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम खेत की बेहतर ढ़ंग से मृदा पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर देनी चाहिए। क्योंकि, इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। इसके पश्चात खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसकी रोटावेटर से जुताई कर मृदा में बेहतर ढ़ंग से मिला देना चाहिए। खाद को मृदा में मिलाने के पश्चात खेत में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर देना चाहिए। इसके उपरांत खेत में नींबू का पौधरोपण करने के लिए गड्डों को तैयार कर लिया जाता है।


 

नींबू पोधरोपण का उपयुक्त समय एवं विधि

नींबू का पौधरोपण पौध के तौर पर किया जाता है। इसके लिए नींबू के पौधों को नर्सरी से खरीद लेना चाहिए। ध्यान दने वाली बात यह है, कि गए पौधे एक माह पुराने एवं पूर्णतय स्वस्थ होने चाहिए। पौधों की रोपाई के लिए जून और अगस्त का माह उपयुक्त माना जाता है। बारिश के मौसम में इसके पौधे काफी बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। पौधरोपण के पश्चात इसके पौधे तीन से चार साल उपरांत उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। नींबू का पौधरोपण करने के लिए खेत में तैयार किये गए गड्डों के बीच 10 फीट का फासला रखा जाता है, जिसमें गड्डो का आकार 70 से 80 CM चौड़ा एवं 60 CM गहरा होता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 पौधे लगाए जा सकते हैं। नींबू के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। वह इसलिए क्योंकि नींबू का पौधरोपण बारिश के मौसम में किया जाता है। इस वजह से उन्हें इस दौरान ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके पौधों की सिंचाई नियमित समयांतराल के अनुरूप ही करें। सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देता होता है। इससे ज्यादा पानी देने पर खेत में जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो कि पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक साबित होती है।


 

नींबू की खेती में लगने वाले कीट

रस चूसक कीट

सिटरस सिल्ला, सुरंग कीट एवं चेपा की भांति के कीट रोग शाखाओं एवं पत्तियों का रस चूसकर उनको पूर्णतय नष्ट कर देते हैं। बतादें, कि इस प्रकार के रोगों से बचाव करने के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की समुचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा इन रोगो से प्रभावित पौधों की शाखाओं को काटकर उन्हें अलग कर दें।

काले धब्बे

नींबू की खेती में काले धब्बे का रोग नजर आता है। बतादें, कि काला धब्बा रोग से ग्रसित नींबू के ऊपर काले रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं। शुरआत में पानी से धोकर इस रोग को बढ़ने से रोक सकते हैं। अगर इस रोग का असर ज्यादा बढ़ जाता है, तो नींबू पर सलेटी रंग की परत पड़ जाती है। इस रोग से संरक्षण करने हेतु पौधों पर सफेद तेल एवं कॉपर का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। 

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नींबू में जिंक और आयरन की कमी होने पर क्या करें

नींबू के पौधों में आयरन की कमी होने की स्थिति में पौधों की पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती हैं। जिसके कुछ वक्त पश्चात ही पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और पौधा भी आहिस्ते-आहिस्ते सूखने लगती है। नींबू के पौधों को इस किस्म का रोग प्रभावित ना करे। इसके लिए पौधों को देशी खाद ही देनी चाहिए। इसके अलावा 10 लीटर जल में 2 चम्मच जिंक की मात्रा को घोलकर पौधों में देनी होती है।


 

नींबू की कटाई, उत्पादन और आय

नींबू के पौधों पर फूल आने के तीन से चार महीने बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। इसके उपरांत पौधों पर लगे हुए नींबू को अलग कर लिया जाता है। नींबू की उपज गुच्छो के रूप में होती है, जिसके चलते इसके फल भिन्न-भिन्न समय पर तुड़ाई हेतु तैयार होते है। तोड़े गए नीबुओं को बेहतरीन ढंग से स्वच्छ कर क्लोरीनेटड की 2.5 GM की मात्रा एक लीटर जल में डालकर घोल बना लें। इसके पश्चात इस घोल से नीबुओं की साफ-सफाई करें। इसके पश्चात नीबुओं को किसी छायादार स्थान पर सुखा लिया जाता है। नींबू का पूरी तरह विकसित पौधा एक साल में लगभग 40 KG की उपज दे देता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 नींबू के पौधे लगाए जा सकते हैं। इस हिसाब से किसान भाई एक वर्ष की उपज से 3 लाख रुपए तक की आमदनी सुगमता से कर सकते हैं।